Durga Kavach Lyrics in Hindi and Sanskrit: Durga Kavach is a conversation between the creator Brahma and Markandeya rishi. This Kavach protects the devotees of goddess Durga like a shield from evils and epidemic diseases. Hearing the praise of goddess Durga, all kinds of fear and dread vanish from the mind. It also protects the devotee and his family.
In this Kavach Brahma Ji praised 9 forms of goddesses, which are known by 9 names, Shailputri, Brahmacharini, Chandraghanta, Kushmanda, Skandamata, Katyayani, Kalratri, Mahagauri, And Siddhidatri. These 9 goddesses are worshiped during the Navratri festival. It is believed that all goddesses come to earth for the welfare of humans. The devotees of Maa Durga organize a grand Durga Puja by establishing the idol of Durga Mata and an urn in the house.
In this post, you will find the complete lyrics of Durga Kavach in Hindi (दुर्गा कवच पाठ) and Sanskrit (दुर्गा कवच संस्कृत).
Durga Kavach Lyrics In Hindi
Song Title | Durga Kavach | श्री दुर्गा रक्षा कवच |
Singer (Hindi) | Rajalakshmee Sanjay |
Lyrics (Hindi) | Chaman Lal Bhardwaj Chaman |
Music Label (Hindi) | Music Nova |
ऋषि मार्कण्डेय ने पूछा जभी
दया कर के ब्रह्माजी बोले तभी
के जो गुप्त मंत्र है संसार में
हैं सब शक्तियां जिसके अधिकार में
हर इक का जो कर सकता उपकार हैं
जिसे जपने से बेडा ही पार हैं
पवित्र कवच दुर्गा बलशाली का
जो हर काम पूरे करे सवाली का
सुनो मार्कण्डेय मैं समझाता हूँ
मैं नवदुर्गा के नाम बतलाता हूँ
कवच की मैं सुंदर चोपाई बना
जो अत्यंत हैं गुप्त देऊ बता
नव दुर्गा का कवच ये
पढे जो मन चित लाए
उसपे किसी प्रकार का
कभी कष्ट ना आए
कहो जय जय जय महारानी की
जय दुर्गा अष्ट भवानी की
कहो जय जय महारानी की
जय दुर्गा अष्ट भवानी की
पेहली शैलपुत्री कहलावे
दूसरी ब्रह्मचारिणी मन भावे
तिसरी चंद्रघंटा शुभ नाम
चौथी कुश्मांड़ा सुखधाम
पाचवी देवी स्कंदमाता
छटी कात्यायनी विख्याता
सातवी कालरात्रि महामाया
आठवी महागौरी जग जाया
नौवीं सिद्धिदात्री जग जाने
नव दुर्गा के नाम बखाने
महासंकट में बन में रण में
रुप कोई उपजे निज तन में
महाविपत्ति में व्यवहार में
मान चाहे जो राज दरबार में
शक्ति कवच को सुने सुनाये
मनोकामना सिद्धी नर पाए
चामुंडा है प्रेत पर
वैष्णवी गरुड़ सवार
बैल चढी महेश्वरी
हाथ लिए हथियार
कहो जय जय जय महारानी की
जय दुर्गा अष्ट भवानी की
कहो जय जय महारानी की
जय दुर्गा अष्ट भवानी की
हंस सवारी वाराही की
मोर चढी दुर्गा कौमारी
लक्ष्मी देवी कमल असीना
ब्रह्मी हंस चढी ले वीणा
ईश्वरी सदा बैल सवारी
भक्तन की करती रखवारी
शंख चक्र शक्ति त्रिशुला
हल मूसल कर कमल के फूला
दैत्य नाश करने के कारण
रुप अनेक किन्हें धारण
बार बार मैं सीस नवाऊं
जगदम्बे के गुण को गाऊँ
कष्ट निवारण बलशाली माँ
दुष्ट संहारण महाकाली माँ
कोटी कोटी माता प्रणाम
पूरण की जो मेरे काम
दया करो बलशालिनी
दास के कष्ट मिटाओ
चमन की रक्षा को सदा
सिंह चढी माँ आओ
कहो जय जय जय महारानी की
जय दुर्गा अष्ट भवानी की
कहो जय जय जय महारानी की
जय दुर्गा अष्ट भवानी की
अग्नि से अग्नि देवता
पूरब दिशा में येंदरी
दक्षिण में वाराही मेरी
नैऋत्य में खडग धारिणी
वायु से माँ मृग वाहिनी
पश्चिम में देवी वारुणी
उत्तर में माँ कौमारी जी
ईशान में शूल धारिणी
ब्राह्मणी माता अर्श पर
माँ वैष्णवी इस फर्श पर
चामुंडा दसों दिशाओं में
हर कष्ट तुम मेरा हरो
संसार में माता मेरी
रक्षा करो रक्षा करो
सन्मुख मेरे देवी जया
पाछे हो माता विजैया
अजीता खड़ी बायें मेरे
अपराजिता दायें मेरे
उद्योतिनी माँ शिखा की
माँ उमा देवी सिर की ही
मालाधारी ललाट की
और भृकुटी की माँ यशस्विनी
भृकुटी के मध्य त्रिनेत्र
यम घंटा दोनो नासिका
काली कपोलों की कर्ण
मूलों की माता शंकरी
नासिका में अंश अपना
माँ सुगंधा तुम धरो
संसार में माता मेरी
रक्षा करो रक्षा करो
ऊपर वा नीचे होठों की
माँ चर्चिका अमृत कली
जीभा की माता सरस्वती
दांतों की कौमारी सती
इस कंठ की माँ चंडिका
और चित्रघंटा घंटी की
कामाक्षी माँ ढ़ोढ़ी की
माँ मंगला इस वाणी की
ग्रीवा की भद्रकाली माँ
रक्षा करे बलशाली माँ
दोनो भुजाओं की मेरे
रक्षा करे धनु धारनी
दो हाथों के सब अंगों की
रक्षा करे जग तारिणी
शुलेश्वरी, कुलेश्वरी
महादेवी शोक विनाशीनी
छाती स्तनों और कंधों की
रक्षा करे जग वासिनी
हृदय उदार और नाभि की
कटी भाग के सब अंग की
गुह्येश्वरी माँ पूतना
जग जननी श्यामा रंग की
घुटनों जंघाओं की करे
रक्षा वो विंध्यवासिनी
टकनों व पावों की करे
रक्षा वो शिव की दासनी
रक्त मांस और हड्डियों से
जो बना शरीर
आतों और पित वात में
भरा अग्न और नीर
बल बुद्धि अंहकार और
प्राण ओ पाप समान
सत रज तम के गुणों में
फसी है यह जान
धार अनेकों रुप ही
रक्षा करियो आन
तेरी कृपा से ही माँ
चमन का है कल्याण
आयु यश और कीर्ति धन
सम्पति परिवार
ब्रह्मणी और लक्ष्मी
पार्वती जग तार
विद्या दे माँ सरस्वती
सब सुखों की मूल
दुष्टों से रक्षा करो
हाथ लिए त्रिशूल
भैरवी मेरी भार्या की
रक्षा करो हमेश
मान राज दरबार में
देवें सदा नरेश
यात्रा में दुःख कोई ना
मेरे सिर पर आए
कवच तुम्हारा हर जगाह
मेरी करे सहाए
है जग जननी कर दया
इतना दो वरदान
लिखा तुम्हारा कवच ये
पढे जो निश्चय मान
मन वांछित फल पाए वो
मंगल मूर्त बसाए
कवच तुम्हारा पढ़ते ही
नवनिधि घर मे आए
ब्रह्माजी बोले सुनो मार्कण्डेय
यह दुर्गा कवच मैंने तुमको सुनाया
रहा आज तक था गुप्त भेद सारा
जगत की भलाई को मैंने बताया
सभी शक्तियां जग की करके एकत्रित
है मिट्टी की देह को इसे जो पहनाया
चमन जिसने श्रद्धा से इसको पढ़ा जो
सुना तो भी मुह माँगा वरदान पाया
जो संसार में अपने मंगल को चाहे
तो हरदम कवच यही गाता चला जा
बियाबान जंगल दिशाओं दशों में
तू शक्ति की जय जय मनाता चला जा
तू जल में तू थल में तू अग्नि पवन में
कवच पेहन कर मुस्कुराता चला जा
निडर हो विचर मन जहाँ तेरा चाहे
चमन कदम आगे बढ़ाता चला जा
तेरा मन धन धान्य इस से बढेगा
तू श्रद्धा से दुर्गा कवच को जो गाए
यही मंत्र यंत्र यही तंत्र तेरा
यही तेरे सिर से हर संकट हटायें
यही भूत और प्रेत के भय का नाशक
यही कवच श्रद्धा व भक्ति बढ़ाये
इसे नित्य प्रति चमन श्रद्धा से पढ़ कर
जो चाहे तो मुह माँगा वरदान पाए
इस स्तुति के पाठ से
पेहले कवच पढे
कृपा से आधी भवानी की
बल और बुद्धि बढे
श्रद्धा से जपता रहे
जगदम्बे का नाम
सुख भोगे संसार में
अंत मुक्ति सुखधाम
कृपा करो मातेश्वरी
बालक चमन नादान
तेरे दर पर आ गिरा
करो मैया कल्याण
Written By: Chaman Lal Bhardwaj Chaman
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Durga Kavach Lyrics In Sanskrit
Song Title | Durga Kavach | श्री दुर्गा रक्षा कवच |
Singer (Sanskrit) | Gundecha Brothers, Nirja Pandit |
Lyrics Source (Sanskrit) | Markandeya Purana |
Video Credits (Sanskrit) | Divine Qualities |
ॐ नमश्चण्डिकायै |
|| मार्कण्डेय उवाच ||
ॐ यद्गुह्यं परमं लोके सर्वरक्षाकरं नृणाम्।
यन्न कस्य चिदाख्यातं तन्मे ब्रूहि पितामह || 1 ||
|| ब्रह्मोवाच ||
अस्ति गुह्यतमं विप्रा सर्वभूतोपकारकम्।
दिव्यास्तु कवचं पुण्यं तच्छृणुष्वा महामुने || 2 ||
प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् || 3 ||
पचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम् || 4 ||
नवमं सिद्धिदात्री च नव दुर्गाः प्रकीर्तिताः।
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना || 5 ||
अग्निना दह्यमानस्तु शत्रुमध्ये गतो रणे।
विषमे दुर्गमे चैव भयार्ताः शरणं गताः || 6 ||
न तेषां जायते किंचिदशुभं रणसंकटे।
नापदं तस्य पश्यामि शोकदुःखभयं न ही || 7 ||
यैस्तु भक्त्या स्मृता नूनं तेषां वृद्धिः प्रजायते।
ये त्वां स्मरन्ति देवेशि रक्षसे तान्न संशयः || 8 ||
प्रेतसंस्था तु चामुण्डा वाराही महिषासना।
ऐन्द्री गजसमारूढा वैष्णवी गरुडासना || 9 ||
माहेश्वरी वृषारूढा कौमारी शिखिवाहना।
लक्ष्मी: पद्मासना देवी पद्महस्ता हरिप्रिया || 10 ||
श्वेतरूपधारा देवी ईश्वरी वृषवाहना।
ब्राह्मी हंससमारूढा सर्वाभरणभूषिता || 11 ||
इत्येता मातरः सर्वाः सर्वयोगसमन्विताः।
नानाभरणशोभाढ्या नानारत्नोपशोभिता: || 12 ||
दृश्यन्ते रथमारूढा देव्याः क्रोधसमाकुला:।
शंखम चक्रं गदां शक्तिं हलं च मुसलायुधम् || 13 ||
खेटकं तोमरं चैव परशुं पाशमेव च।
कुन्तायुधं त्रिशूलं च शार्ङ्गमायुधमुत्तमम् || 14 ||
दैत्यानां देहनाशाय भक्तानामभयाय च।
धारयन्त्यायुद्धानीथं देवानां च हिताय वै || 15 ||
नमस्तेऽस्तु महारौद्रे महाघोर पराक्रमे।
महाबले महोत्साहे महाभयविनाशिनि || 16 ||
त्राहि मां देवि दुष्प्रेक्ष्ये शत्रूणां भयवर्धिनि।
प्राच्यां रक्षतु मामैन्द्रि आग्नेय्यामग्निदेवता || 17 ||
दक्षिणेऽवतु वाराही नैऋत्यां खड्गधारिणी।
प्रतीच्यां वारुणी रक्षेद् वायव्यां मृगवाहिनी || 18 ||
उदीच्यां पातु कौमारी ऐशान्यां शूलधारिणी।
ऊर्ध्वं ब्रह्माणी में रक्षेदधस्ताद् वैष्णवी तथा || 19 ||
एवं दश दिशो रक्षेच्चामुण्डा शववाहाना।
जया मे चाग्रतः पातु: विजया पातु पृष्ठतः || 20 ||
अजिता वामपार्श्वे तु दक्षिणे चापराजिता।
शिखामुद्योतिनि रक्षेदुमा मूर्ध्नि व्यवस्थिता || 21 ||
मालाधारी ललाटे च भ्रुवो रक्षेद् यशस्विनी।
त्रिनेत्रा च भ्रुवोर्मध्ये यमघण्टा च नासिके || 22 ||
शङ्खिनी चक्षुषोर्मध्ये श्रोत्रयोर्द्वारवासिनी।
कपोलौ कालिका रक्षेत्कर्णमूले तु शङ्करी || 23 ||
नासिकायां सुगन्धा च उत्तरोष्ठे च चर्चिका।
अधरे चामृतकला जिह्वायां च सरस्वती || 24 ||
दन्तान् रक्षतु कौमारी कण्ठदेशे तु चण्डिका।
घण्टिकां चित्रघण्टा च महामाया च तालुके || 25 ||
कामाक्षी चिबुकं रक्षेद् वाचं मे सर्वमंगला।
ग्रीवायां भद्रकाली च पृष्ठवंशे धनुर्धारी || 26 ||
नीलग्रीवा बहिःकण्ठे नलिकां नलकूबरी।
स्कन्धयोः खड्गिनी रक्षेद् बाहू मे वज्रधारिणी || 27 ||
हस्तयोर्दण्डिनी रक्षेदम्बिका चान्गुलीषु च।
नखाञ्छूलेश्वरी रक्षेत्कुक्षौ रक्षेत्कुलेश्वरी || 28 ||
स्तनौ रक्षेन्महादेवी मनः शोकविनाशिनी।
हृदये ललिता देवी उदरे शूलधारिणी || 29 ||
नाभौ च कामिनी रक्षेद् गुह्यं गुह्येश्वरी तथा।
पूतना कामिका मेढ्रं गुहे महिषवाहिनी || 30 ||
कट्यां भगवतीं रक्षेज्जानूनी विन्ध्यवासिनी।
जङ्घे महाबला रक्षेत्सर्वकामप्रदायिनी || 31 ||
गुल्फयोर्नारसिंही च पादपृष्ठे तु तैजसी।
पादाङ्गुलीषु श्रीरक्षेत्पादाध:स्तलवासिनी || 32 ||
नखान् दंष्ट्राकराली च केशांशचैवोर्ध्वकेशिनी।
रोमकूपेषु कौबेरी त्वचं वागीश्वरी तथा || 33 ||
रक्तमज्जावसामांसान्यस्थिमेदांसि पार्वती।
अन्त्राणि कालरात्रिश्च पित्तं च मुकुटेश्वरी || 34 ||
पद्मावती पद्मकोशे कफे चूडामणिस्तथा।
ज्वालामुखी नखज्वालामभेद्या सर्वसन्धिषु || 35 ||
शुक्रं ब्रह्माणी मे रक्षेच्छायां छत्रेश्वरी तथा।
अहङ्कारं मनो बुद्धिं रक्षेन्मे धर्मधारिणी || 36 ||
प्राणापानौ तथा व्यानमुदानं च समानकम्।
वज्रहस्ता च मे रक्षेत्प्राणं कल्याणशोभना || 37 ||
रसे रूपे च गन्धे च शब्दे स्पर्शे च योगिनी।
सत्वं रजस्तमश्चैव रक्षेन्नारायणी सदा || 38 ||
आयू रक्षतु वाराही धर्मं रक्षतु वैष्णवी।
यशः कीर्तिं च लक्ष्मीं च धनं विद्यां च चक्रिणी || 39 ||
गोत्रमिन्द्राणि मे रक्षेत्पशून्मे रक्ष चण्डिके।
पुत्रान् रक्षेन्महालक्ष्मीर्भार्यां रक्षतु भैरवी || 40 ||
पन्थानं सुपथा रक्षेन्मार्गं क्षेमकरी तथा।
राजद्वारे महालक्ष्मीर्विजया सर्वतः स्थिता || 41 ||
रक्षाहीनं तु यत्स्थानं वर्जितं कवचेन तु।
तत्सर्वं रक्ष मे देवी जयन्ती पापनाशिनी || 42 ||
पदमेकं न गच्छेतु यदिच्छेच्छुभमात्मनः।
कवचेनावृतो नित्यं यात्र यत्रैव गच्छति || 43 ||
तत्र तत्रार्थलाभश्च विजयः सर्वकामिकः।
यं यं चिन्तयते कामं तं तं प्राप्नोति निश्चितम्।
परमैश्वर्यमतुलं प्राप्स्यते भूतले पुमान् || 44 ||
निर्भयो जायते मर्त्यः सङ्ग्रमेष्वपराजितः।
त्रैलोक्ये तु भवेत्पूज्यः कवचेनावृतः पुमान् || 45 ||
इदं तु देव्याः कवचं देवानामपि दुर्लभम्।
य: पठेत्प्रयतो नित्यं त्रिसन्ध्यं श्रद्धयान्वितः || 46 ||
दैवी कला भवेत्तस्य त्रैलोक्येष्वपराजितः।
जीवेद् वर्षशतं साग्रामपमृत्युविवर्जितः || 47 ||
नश्यन्ति टयाधय: सर्वे लूताविस्फोटकादयः।
स्थावरं जङ्गमं चैव कृत्रिमं चापि यद्विषम् || 48 ||
अभिचाराणि सर्वाणि मन्त्रयन्त्राणि भूतले।
भूचराः खेचराशचैव जलजाश्चोपदेशिकाः || 49 ||
सहजा कुलजा माला डाकिनी शाकिनी तथा।
अन्तरिक्षचरा घोरा डाकिन्यश्च महाबला || 50 ||
ग्रहभूतपिशाचाश्च यक्षगन्धर्वराक्षसा:।
ब्रह्मराक्षसवेतालाः कूष्माण्डा भैरवादयः || 51 ||
नश्यन्ति दर्शनात्तस्य कवचे हृदि संस्थिते।
मानोन्नतिर्भावेद्राज्यं तेजोवृद्धिकरं परम् || 52 ||
यशसा वद्धते सोऽपी कीर्तिमण्डितभूतले।
जपेत्सप्तशतीं चणण्डीं कृत्वा तु कवचं पूरा || 53 ||
यावद्भूमण्डलं धत्ते सशैलवनकाननम्।
तावत्तिष्ठति मेदिनयां सन्ततिः पुत्रपौत्रिकी || 54 ||
देहान्ते परमं स्थानं यात्सुरैरपि दुर्लभम्।
प्राप्नोति पुरुषो नित्यं महामायाप्रसादतः || 55 ||
लभते परमं रूपं शिवेन सह मोदते || 56 ||
|| ॐ ||
।। इति देव्या: कवचं सम्पूर्णम् ।।